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मारवाड़- जाट समाज: शैक्षिक एवं सामाजिक जागृति

मारवाड़- जाट समाज: शैक्षिक एवं सामाजिक जागृति पुस्तक का विमोचन 11 मार्च 2022 को मेघालय के माननीय राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किया। इसका प्रकाशन मारवाड़ जाट महासभा संस्थान व्दारा किया गया है।

समाज के इतिहास लेखन की उपादेयता

किसी भी समाज के सम्यक मूल्यांकन में इतिहास की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए इतिहास लेखन अनवरत चलती रहने वाली प्रक्रिया है। इतिहासकार अपने अनुसंधान के द्वारा प्राप्त नवीन तथ्यों के आलोक में वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अतीत का मूल्यांकन भी करता है और भविष्य की संभावनाओं को भी प्रक्षेपित करता है। इतिहास की जानकारी के बिना समाज के क्रमिक विकास को समझा ही नहीं जा सकता है। किसी समाज के इतिहास लेखन में उस समाज में समय के साथ आए बदलाओं तथा उन बदलाओं के प्रेरक पुरुषों व कारकों तथा विकास यात्रा की व्याख्या होती है। समाज के स्वरूप-निर्माण और परिवर्तन में इतिहास की प्रमुख भूमिका है। प्रस्तुत पुस्तक 'मारवाड़- जाट समाज: शैक्षिक एवं सामाजिक जागृति’ इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है।

परम्परागत इतिहास लेखन राजा-रानियों गौरव गाथा का बखान करने तक सिमटा रहा है। आमजन को इतिहास की परिधि से बाहर धकेल कर रखा गया है। समाज के हर तकबे में शिक्षा का उजियारा फैलने का ही नतीजा है कि अब लोग राजा-रानी की बजाय आम लोगों का इतिहास जानना चाहते हैं। इसलिए इतिहास की एक धारा भी इस ओर बहने लगी है।

रियासतकालीन में मारवाड़ के जाट आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़े रहे। अन्य रियासतों की तुलना में मारवाड़ में अशिक्षा का अभिशाप लंबे समय तक रहा। राठौड़ो के मारवाड़ में आगमन से मारवाड़ व जांगल प्रदेश में कई जाट जनपद थे जहां पंचायत व्यवस्था से शासन व सामाजिक सरोकारों का संचालन होता था। राठौड़ो के मारवाड़ व बीकानेर पर आधिपत्य करने के बाद जाट केवल खेतीहर कौम तक सीमित होकर रह गयी। मारवाड़ सहित सभी राजपूत रियासतों में सामंती जागीरी तंत्र के कारण जाट व अन्य किसानों का आर्थिक शोषण तथा सामाजिक उत्पीड़न चरम सीमा पर था।

मूलतः खेती-किसानी से जुड़ी जाट कौम को राजशाही व्यवस्था में पढ़ने का अधिकार भी नहीं था। किसान वर्ग सदियों तक आर्थिक और सामाजिक शोषण का सहज शिकार रहा। सत्ता के केंद्रों से तो उसे कोसों दूर रखा जाता था। इन्हीं कारणों से इतिहास ने इस वर्ग के साथ न्याय नहीं किया। दमित और उत्पीड़ित किसानों में जागृति का संचार होने से शोषण और अत्याचारों के प्रतीकार की भावना जागृत हो गई और किसान आंदोलन के जरिए अपनी पुरजोर आवाज़ बुलंद करने लगे।


पुस्तक की विषय-वस्तु

'मारवाड़ जाट समाज: शैक्षिक एवं सामाजिक जागृति' शीर्षक से लिखी गई इस पुस्तक में मध्यकाल से बीसवीं सदी तक के मारवाड़ के जाट समाज, जो कि एक श्रमशील समाज है, के तात्कालिक शिक्षा, आर्थिक तथा सामाजिक हालातों का समुचित उल्लेख है। इसमें तात्कालिक ऐतिहासिक प्रसंगों, समाज सुधारकों, जन चेतना की मशाल जलाने वाले किसान नेताओं के जीवन से जुड़े विभिन्न तथ्यों और समाज के उत्थान में उनके योगदान को सही परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन करने के साथ ही उनको केन्द्रीयता प्रदान की गई है।

मारवाड़ में जाट कौम में कुछ असाधारण हस्तियों ने शिक्षा प्रसार को प्रथम लक्ष्य बनाकर सामाजिक व राजनीतिक चेतना से अत्याचारों व सामंती शोषण के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व किया। इस मुहिम में अग्रिम पंक्ति में बलदेवराम जी मिर्धा, चौधरी गुल्लाराम, चौधरी मूलचंद, चौधरी भींयाराम तथा चौधरी रामदान थे। इस मुहिम में दूसरी पीढ़ी की महत्त्वपूर्ण कड़ी में नाथूराम मिर्धा, हीरासिंह चाहर, परसराम मदेरणा तथा गंगा राम चौधरी रहे। इन समाज- रत्नों के संबंध में अलग- अलग पुस्तकें तो हैं लेकिन इनका एक साथ संकलित इतिहास नहीं है। इसलिए मारवाड़ के जाट सामाज की प्रमुख हस्तियों के साहसिक व निर्भिक व्यक्तित्व के ऐतिहासिक महत्व को एक साथ इस पुस्तक में प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया।

समाज सेवा के प्रति समर्पित इन महानुभावों ने सबसे पहले शिक्षा प्रसार हेतु जोधपुर के साथ अलग- अलग परगनों में छात्रावासों की जो श्रृंखला बनाई उससे जाटों के साथ सर्व किसान वर्ग के युवा विपरीत परिस्थितियों में शिक्षित हो सके। छात्रावासों की महत्ता आजादी के पश्चात भी बनी रही क्योंकि स्कूलों व कॉलेजों का दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में वांछित विस्तार नहीं हुआ। इसलिए उपयुक्त स्थानों पर जाट समाज के छात्रावासों का निर्माण निरंतर होता रहा। किसी भी समाज का सर्वांगीण विकास महिला शिक्षा के बगैर सम्भव नहीं हो सकता, इस बात को ध्यान में रखकर महिला छात्रावासों की स्थापना के साथ महिला शिक्षा हेतु ग्रामीण महिला विधापीठ भी समाज के प्रगतिशील सोच के महानुभावों ने स्थापित किए। शिक्षा प्रसार हेतु स्थापित जाट समाज के छात्रावासों एवं महिला विद्यापीठ की जानकारियां प्रामाणिक स्रोतों से जुटाकर इस पुस्तक में सम्मलित की गयी हैं।


पुस्तक का सार संक्षेप

आज विमोचित होने वाली इस पुस्तक "मारवाड़ जाट समाज: शैक्षिक एवं सामाजिक जागृति" के प्रथम अध्याय 'जाटों की विशिष्टताएं एवं इतिहास' में जाटों की उत्पत्ति, विशेषताएं व स्वभाव( temperament), विशिष्ट व्यवस्थाएं, राजस्थान में जाटों का आगमन व बसावट आदि कुछ ऐतिहासिक तथ्यों का विवरण दिया गया है।

द्वितीय अध्याय 'मारवाड़ का इतिहास तथा किसानों की स्थिति' में मारवाड़ शब्द की उत्पत्ति, मारवाड़ की भौगोलिक पृष्ठभूमि, राठौड़ों का मारवाड़ में आगमन और उनकी शासन व्यवस्था, जागीरदारी प्रथा, जागीरदारों की मनमानी, भू- राजस्व पद्धति, फसल मूल्यांकन की पद्धति एवं अतिशय शोषणकारी कर व्यवस्था से किसानों के आर्थिक व सामाजिक उत्पीड़न का तथ्यात्मक विवरण मय प्रामाणिक स्रोतों के सहारे प्रस्तुत किया गया है।

अध्याय तृतीय 'अग्रगण्य जनसेवक' में राजशाही दौर में शोषित व अशिक्षित जाट समाज के साथ सर्व किसान वर्ग में शैक्षिक जन जागृति की मशाल जलाने वाले समाज के अग्रणी प्रबुद्ध जनों के संघर्षपूर्ण जीवन और उनके अवदान ( contribution) का सही परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन कर उनको केंद्रीयता प्रदान की गई है।

यह पुस्तक को उन युग पुरुषों को समर्पित है जिन्होंने समाज के उत्थान एवं जागृति में अहम योगदान देकर संकटकालीन दौर में समाज में शिक्षा की अलख जगाई जिसके फलस्वरूप समाज की दशा और दिशा बदल सकी है।

*किसान केसरी बलदेव राम जी मिर्धा
*समाजशिरोमणी चौधरी मूलचंद जी सियाग
*शिक्षा सेनानी चौधरी गुल्लाराम जी (बाबू साहब)
*मालानी महामना चौधरी रामदान जी
*समर्पित व्यक्तित्व चौधरी भींयाराम जी
*मारवाड़ के जननायक नाथूराम जी मिर्धा
*बहुमुखी प्रतिभा रामनिवास जी मिर्धा
*जनसेवक भजनोपदेशक- चौधरी हीरासिंह चाहर
*किसान नेता परसराम जी मदेरणा
*नवजागरण के प्रणेता - गंगाराम जी चौधरी

चुनौतियों से मुकाबला कर जीत की ज़िद के साथ आगे बढ़ने वाले समाज के इन इन प्रमुख शिक्षा-सेनानियों व समाज सुधारकों के तप और त्याग की बदौलत किसान कौम का भविष्य संवर सका है।

चतुर्थ अध्याय का शीर्षक 'मारवाड़ में जाट (किसान) छात्रावास व शिक्षा प्रसार (1927 ई. से वर्तमान)' है और इसमें जाट समाज के अग्रगण्य महानुभावों द्वारा तत्कालीन विपरीत परिस्थितियों में सूझबूझ से किसानों में शिक्षा के प्रसार हेतु जिन छात्रावासों की स्थापना कर शैक्षिक जागृति की मशाल प्रज्जवलित की उनके संबंध में विस्तृत जानकारियों का संकलन प्रस्तुत किया गया है। साथ ही देश में लोकतंत्र स्थापना से वर्तमान तक मारवाड़ के अलग-अलग स्थानों पर स्थापित छात्रावासों तथा महिला शिक्षा के विद्यापीठों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।


कुल 256 पेज की इस पुस्तक का प्रकाशन मारवाड़ जाट महासभा संस्थान द्वारा किया गया है और इसके सह प्रकाशक राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर है।

पुस्तक के लेखक हैं--
मारवाड़ जाट महासभा के अध्यक्ष डॉ गंगाराम जाखड़,
पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर हनुमाना राम ईसराण,
जाट इतिहास के लेखक जोगाराम सारण

पुस्तक प्राप्त करने के लिए मारवाड़ जाट महासभा संस्थान के अध्यक्ष के मोबाइल 9414075333 पर संपर्क कर सकते हैं।